अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों में तनाव एक नए स्तर पर पहुंच गया है। अमेरिकी कांग्रेस के 42 सदस्यों ने विदेश मंत्री मार्को रूबियो को एक औपचारिक पत्र लिखकर पाकिस्तान के शीर्ष अधिकारियों पर वीजा प्रतिबंध, संपत्तियों की जब्ती और अन्य कठोर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। इस पत्र का नेतृत्व डेमोक्रेट सांसद प्रमिला जयपाल और ग्रेग केसर ने किया, जिनका कहना है कि पाकिस्तान की सेना-समर्थित सरकार देश और विदेश में रह रहे आलोचकों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दमन का इस्तेमाल कर रही है। पत्र में अमेरिकी सांसदों ने बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं—पाकिस्तान सरकार और उसकी सैन्य एजेंसियां न केवल अपने नागरिकों बल्कि अमेरिका में रहने वाले पाकिस्तानी मूल के आलोचकों और उनके परिवारों को भी निशाना बना रही हैं। सांसदों का कहना है कि इस दमनकारी प्रक्रिया में धमकियां, अपहरण, निगरानी और उत्पीड़न जैसे तरीके शामिल हैं, जो किसी भी लोकतांत्रिक शासन के अनुरूप नहीं हैं।
पत्र में लगाए गए गंभीर आरोप
कांग्रेस सदस्यों द्वारा भेजे गए इस पत्र में उन मामलों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया, जहाँ पाकिस्तान सरकार की आलोचना करने वाले व्यक्तियों के परिवारों को निशाना बनाया गया। इसमें प्रमुख उदाहरण के रूप में:
इन मामलों को गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सांसदों के मुताबिक, ये घटनाएं यह साबित करती हैं कि पाकिस्तान की सत्ता प्रणाली अब केवल अपने भू-राजनीतिक हितों तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक स्तर पर आलोचना को दबाने का प्रयास भी कर रही है।
तानाशाही की चेतावनी और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर प्रश्न
पत्र में यह भी कहा गया कि पाकिस्तान “गंभीर तानाशाही संकट” से गुजर रहा है। विपक्षी नेताओं को बिना औपचारिक आरोपों के हिरासत में रखा जा रहा है, पत्रकारों को धमकाकर देश छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा है और आम नागरिकों को केवल सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर गिरफ्तार किया जा रहा है। विशेष रूप से महिलाओं, बलूच समुदाय और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्यधिक दमन का उल्लेख किया गया है। सांसदों का कहना है कि राज्य-प्रायोजित हिंसा और सैन्य गिरफ्त लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर रही है और पाकिस्तान अब एक “सेना-प्रायोजित शासन” में बदल चुका है।
चुनावों की पारदर्शिता पर सवाल
2024 के आम चुनावों में हुई कथित अनियमितताओं का मुद्दा भी पत्र में उठाया गया है। अमेरिकी सांसदों ने कहा कि स्वतंत्र संस्था ‘पट्टन रिपोर्ट’ में चुनावी धांधलियों और सत्ता-हस्तांतरण में सेना की सीधी दखलअंदाजी को उजागर किया गया है। पत्र में यह भी कहा गया कि चुनावों के बाद बनी नागरिक सरकार वास्तव में “सेना की कठपुतली” की तरह काम कर रही है। साथ ही पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट द्वारा नागरिकों को सैन्य अदालतों में मुकदमे चलाने की अनुमति को न्यायिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला बताया गया है।
क्या होगा आगे?
यदि अमेरिकी विदेश विभाग इस मांग पर आगे बढ़ता है, तो इसका असर केवल पाकिस्तान के शीर्ष राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि उसके अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक स्थान पर भी पड़ेगा।
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सैन्य अधिकारियों पर वीजा प्रतिबंध
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विदेशी संपत्तियों की जप्ती
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वैश्विक मंचों पर राजनीतिक अलगाव
ये कदम पाकिस्तान के लिए न केवल आर्थिक, बल्कि कूटनीतिक संकट भी गहरा सकते हैं।
अमेरिकी कांग्रेस का यह पत्र स्पष्ट संदेश देता है कि वाशिंगटन अब पाकिस्तान में लोकतांत्रिक संस्थाओं के क्षरण और मानवाधिकार दमन को नजरअंदाज करने के मूड में नहीं है। आने वाले महीनों में अमेरिका-पाकिस्तान संबंध किस दिशा में जाते हैं, यह काफी हद तक रूबियो प्रशासन के फैसलों पर निर्भर करेगा, लेकिन मौजूदा संकेत स्पष्ट हैं—अमेरिका सख्त रुख अपनाने की तैयारी में है।