र्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति की तीखी आलोचना करते हुए बड़ा बयान दिया है। उनका कहना है कि इस नीति के कारण अमेरिका की दशकों की मेहनत बर्बाद हो गई, जो भारत को रूस से दूर करने और उसे चीन के बढ़ते प्रभाव से सावधान करने की दिशा में की जा रही थी।
भारत को लेकर अमेरिका की रणनीति पर पड़ा असर
बोल्टन के मुताबिक, अमेरिका पिछले तीन दशकों से भारत को पश्चिमी खेमे की ओर लाने की कोशिश कर रहा था। भारत का झुकाव परंपरागत रूप से रूस की ओर रहा है, लेकिन समय के साथ अमेरिका-भारत संबंधों में सुधार आया। रणनीतिक साझेदारी, सैन्य समझौते और व्यापारिक गठजोड़ इसके उदाहरण हैं।
लेकिन ट्रंप की टैरिफ नीति, जिसमें भारत पर भारी शुल्क लगाए गए, ने इस विश्वास को नुकसान पहुंचाया है। बोल्टन का कहना है कि यह अवसर था जब अमेरिका को रणनीतिक समझदारी दिखानी चाहिए थी, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने सिर्फ व्यापारिक लाभ पर ध्यान केंद्रित किया।
चीन को मिल रहा है सीधा फायदा
बोल्टन ने यह भी कहा कि इस परिस्थिति का सबसे बड़ा लाभार्थी चीन है। टैरिफ और आर्थिक दबाव की नीति ने भारत को मजबूर किया है कि वह विकल्पों की तलाश करे। एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) समिट में पीएम नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है।
भारत और चीन के बीच हाल ही में व्यापारिक संबंधों में नरमी आई है, और दोनों देश आर्थिक मामलों में फिर से सहयोग बढ़ा रहे हैं। यह स्थिति एशिया में चीन के प्रभाव को और बढ़ा सकती है, जिससे अमेरिका की रणनीतिक पकड़ कमजोर हो रही है।
रूस के साथ रिश्ते और गहरे हुए
ल्टन ने इस बात पर भी चिंता जताई कि भारत और रूस के संबंध और मजबूत होते जा रहे हैं। हाल ही में संपन्न 25वें शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की गर्मजोशी ने यह साफ कर दिया कि भारत रूस को पूरी तरह नहीं छोड़ सकता।
ट्रंप प्रशासन द्वारा रूस से सस्ता तेल खरीदने पर भारत पर अतिरिक्त टैरिफ (25%) लगाने की नीति ने भारत को नाराज कर दिया है। इसके अलावा, अमेरिका ने 50% तक कुल टैरिफ लगाकर भारत की अर्थव्यवस्था पर दबाव बनाने की कोशिश की, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में खटास आ गई।
बोल्टन की सलाह: रिश्तों में सामरिक सोच जरूरी
बोल्टन का कहना है कि भारत सिर्फ एक व्यापारिक भागीदार नहीं है, बल्कि अमेरिका के लिए एशिया में सबसे बड़ा रणनीतिक सहयोगी है। चीन के खिलाफ अमेरिका की रणनीति भारत के सहयोग के बिना अधूरी है। इसलिए अमेरिका को अपनी नीतियों में संतुलन और समझदारी दिखानी चाहिए।
उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर अमेरिका ने अभी भी रणनीतिक दृष्टिकोण नहीं अपनाया, तो भारत रूस और चीन के और करीब जा सकता है, जिससे अमेरिका की एशिया नीति पूरी तरह विफल हो जाएगी।
निष्कर्ष
जॉन बोल्टन का यह बयान स्पष्ट करता है कि सिर्फ व्यापारिक फायदे के चक्कर में अमेरिका अपनी दीर्घकालिक रणनीतिक स्थिति को कमजोर कर रहा है। भारत जैसे देश के साथ रिश्ते केवल शुल्क और व्यापार पर आधारित नहीं हो सकते। अगर अमेरिका को एशिया में अपनी स्थिति मजबूत रखनी है, तो उसे भारत के साथ विश्वास और सहयोग के रिश्ते को प्राथमिकता देनी होगी।