मौत की सजा के तरीके पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, केंद्र ने घातक इंजेक्शन का विकल्प देने से किया इनकार, जानिए पूरा मामला

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Posted On:Wednesday, October 15, 2025

मुंबई, 15 अक्टूबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मौत की सजा के क्रियान्वयन के तरीके को लेकर केंद्र सरकार के रुख पर नाराजगी जताई। सरकार ने उस सुझाव को मानने से इनकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि फांसी की सजा पाए कैदियों को मौत के लिए घातक इंजेक्शन (lethal injection) का विकल्प दिया जाए। अदालत में दायर एक जनहित याचिका में मांग की गई थी कि पारंपरिक फांसी की जगह घातक इंजेक्शन दिया जाए या फिर कैदियों को इन दोनों में से किसी एक विकल्प को चुनने की अनुमति दी जाए।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ऋषि मल्होत्रा ने दलील दी कि दोषी कैदी को यह अधिकार मिलना चाहिए कि वह फांसी या घातक इंजेक्शन में से किसी एक को चुने। उन्होंने कहा कि इंजेक्शन से दी जाने वाली मौत तेज, मानवीय और सम्मानजनक होती है, जबकि फांसी अमानवीय, क्रूर और दर्दनाक प्रक्रिया है। मल्होत्रा ने अदालत को बताया कि भारतीय सेना में पहले से ही ऐसा विकल्प मौजूद है। हालांकि, सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि कैदियों को इस तरह का विकल्प देना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है।

सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सोनिया माथुर ने कहा कि दंड प्रक्रिया में बदलाव या विकल्प देना नीति का मामला है और इसे अदालत के जरिए तय नहीं किया जा सकता। वहीं, याचिकाकर्ता का तर्क था कि मौजूदा फांसी की प्रक्रिया में दोषी को लंबे समय तक पीड़ा झेलनी पड़ती है, इसलिए उसे बदलकर अधिक मानवीय तरीकों को अपनाया जाना चाहिए। याचिका में कहा गया कि घातक इंजेक्शन, फायरिंग स्क्वाड, इलेक्ट्रोक्यूशन या गैस चैम्बर जैसे विकल्पों से व्यक्ति कुछ ही मिनटों में मर सकता है, जबकि फांसी से मौत होने में करीब 40 मिनट तक का समय लगता है। याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि अमेरिका के 50 में से 49 राज्यों में घातक इंजेक्शन के जरिए सजा दी जाती है। याचिका में यह भी मांग की गई थी कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 354(5) को असंवैधानिक घोषित किया जाए, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 21 यानी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि यह गियान कौर बनाम पंजाब राज्य के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के विपरीत है। याचिकाकर्ता ने यह भी आग्रह किया कि सम्मानजनक मृत्यु की प्रक्रिया को भी अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।


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