मुंबई, 11 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारतीय सेना की जज एडवोकेट जनरल (JAG) शाखा में पुरुष और महिला अधिकारियों के लिए 2:1 अनुपात में आरक्षण देने की नीति को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया। यह फैसला दो महिला उम्मीदवारों की याचिका पर सुनवाई के बाद आया, जिनका कहना था कि मेरिट लिस्ट में उच्च स्थान होने के बावजूद सीमित महिला सीटों के कारण उन्हें मौका नहीं मिला, जबकि उनसे कम अंक पाने वाले पुरुष उम्मीदवारों का चयन कर लिया गया। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल पुरुषों के लिए सीटें आरक्षित करना और महिलाओं की सीटें सीमित करना समानता के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि असली जेंडर न्यूट्रैलिटी का मतलब है कि चयन पूरी तरह योग्यता के आधार पर हो।
इस भर्ती में कुल 9 पद थे, जिनमें 2:1 अनुपात के तहत 6 पुरुष और 3 महिलाएं चुनी गई थीं। अदालत ने कहा कि पिछले वर्षों में महिलाओं को कम मौके मिलने की भरपाई के लिए कम से कम 50% सीटें महिलाओं को दी जानी चाहिए, लेकिन यदि महिलाएं मेरिट में पुरुषों से आगे हैं, तो उन्हें 50% तक सीमित करना भी गलत होगा। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने एक याचिकाकर्ता को तुरंत सेवा में शामिल करने का आदेश दिया, जबकि दूसरी याचिकाकर्ता को राहत नहीं दी गई क्योंकि उसने प्रक्रिया के दौरान नौसेना में नौकरी जॉइन कर ली थी। इससे पहले 6 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी महिलाओं को CDS परीक्षा के जरिए भारतीय सैन्य अकादमी, नौसेना अकादमी और वायुसेना अकादमी में शामिल न करने पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। कोर्ट ने कहा था कि महिला अधिकारियों को सेना में स्थायी नौकरी न देना गंभीर मुद्दा है और सरकार को इसका स्पष्टीकरण देना होगा। यह सुनवाई नवंबर 2025 में होगी। याचिकाकर्ता का कहना था कि UPSC के 28 मई 2025 को जारी CDS-II परीक्षा विज्ञापन में महिलाओं को केवल OTA में आवेदन की अनुमति दी गई, जबकि बाकी तीन अकादमियों में केवल पुरुषों को ही मौका दिया गया है।