मुंबई, 17 जुलाई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। महाराष्ट्र की राजनीति में गुरुवार को उस समय हलचल मच गई जब शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से विधान परिषद अध्यक्ष राम शिंदे के कक्ष में मुलाकात की। यह भेंट लगभग आधे घंटे चली, जिसमें उद्धव के साथ उनके बेटे और विधायक आदित्य ठाकरे भी मौजूद थे। यह मुलाकात ऐसे समय पर हुई जब मुख्यमंत्री फडणवीस की ओर से उद्धव को एक दिन पहले ही एक प्रस्ताव दिया गया था, जिससे यह राजनीतिक संकेत मिल रहे हैं कि दोनों दलों के बीच कोई नई बातचीत संभव है। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि यह चर्चा विपक्ष के नेता के पद को लेकर भी हो सकती है। इस मुलाकात से ठीक एक दिन पहले विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष अंबादास दानवे के विदाई समारोह के दौरान मुख्यमंत्री फडणवीस ने मजाकिया लहजे में कहा था कि भाजपा उद्धव को विपक्ष में नहीं देखती, लेकिन सत्ता पक्ष में उनका स्वागत किया जा सकता है। इस बयान के अगले ही दिन ठाकरे की मुख्यमंत्री से मुलाकात ने राजनीतिक गलियारों में चर्चा को हवा दे दी है। इस मुलाकात में उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री को एक किताब भेंट की, जिसमें भाषा नीति से जुड़ी चिंताओं का उल्लेख किया गया है। किताब का शीर्षक था "हिंदी की सख्ती क्यों, तीन भाषा जरूरी क्यों", जिसे कई पत्रकारों और संपादकों द्वारा लिखा गया है।
आदित्य ठाकरे ने भी स्पष्ट किया कि उन्होंने यह संकलन मुख्यमंत्री को इसलिए सौंपा क्योंकि उनकी पार्टी की यह राय है कि पहली कक्षा से ही तीन भाषा नीति को लागू नहीं किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में महाराष्ट्र में भाषा को लेकर चल रहे विवाद को भी जोड़कर देखा जा रहा है। राज्य में प्राइमरी स्कूलों में हिंदी लागू करने को लेकर राजनीतिक मतभेद उभर आए हैं। शिवसेना (यूबीटी) का कहना है कि वे हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन मराठी पर जबरन हिंदी थोपे जाने और मराठी अस्मिता को कमजोर करने की कोशिश का वे विरोध कर रहे हैं। ठाकरे ने इस मुलाकात में मुख्यमंत्री को समाचार लेखों का एक संकलन सौंपा, जिनमें हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने का विरोध किया गया है। तीन भाषा फॉर्मूले को लागू करने से संबंधित वापस लिए गए सरकारी आदेशों का भी शिवसेना (यूबीटी), मनसे और राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरद पवार गुट) ने तीखा विरोध किया था।
राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव शिवसेना और भाजपा ने मिलकर लड़े थे और संयुक्त रूप से बहुमत भी हासिल किया था। लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों दलों के बीच विवाद हो गया। उद्धव ठाकरे ने दावा किया था कि भाजपा ने मुख्यमंत्री पद को 2.5-2.5 साल के लिए साझा करने का वादा किया था, जिसे बाद में फडणवीस और भाजपा ने खारिज कर दिया। इसके बाद शिवसेना ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व कांग्रेस के साथ मिलकर महा विकास आघाड़ी सरकार बनाई थी, जिसमें उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने थे। यह पहली बार था जब शिवसेना ने वैचारिक रूप से विपरीत दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।