बिहार की राजनीति में सारण जिले की छपरा विधानसभा सीट इन दिनों सुर्खियों में है, और इसका केंद्र बिंदु हैं भोजपुरी फिल्मों के चर्चित चेहरे खेसारी लाल यादव। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने उन्हें इस प्रतिष्ठापूर्ण सीट से विधानसभा चुनाव का टिकट दिया है। छपरा सीट का महत्व सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र तक सीमित नहीं है; इसे कभी लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक "प्रयोगशाला" माना जाता था, जहाँ से उन्होंने 'पिछड़ों के सामाजिक न्याय' का सशक्त नारा दिया था। हालांकि, पिछले दो दशकों से यह सीट RJD के हाथों से फिसल चुकी है।
छपरा: लालू के राजनीतिक उत्थान का गढ़
छपरा सीट लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक जीवन की आधारशिला रही है। 1990 के दशक में जब बिहार में कांग्रेस का वर्चस्व टूट रहा था, तब लालू यादव ने इसी सीट से चुनाव लड़कर 'सामाजिक न्याय' की अपनी राजनीति की शुरुआत की। RJD की ओर से उन्हें इस सीट पर लगातार तीन बार जीत हासिल हुई, जिसके कारण छपरा को लंबे समय तक लालू का "गढ़" माना जाता रहा। यह सीट लगातार दो दशकों तक RJD के कब्जे में रही, यहाँ तक कि लालू यादव ने 2004 और 2009 में इसी क्षेत्र से लोकसभा चुनाव भी बहुमत के साथ जीता था।
2005 के बाद समीकरण में आया बड़ा बदलाव
छपरा सीट पर RJD का वर्चस्व 2005 के बाद टूटना शुरू हो गया। उस वर्ष, बीजेपी और जेडीयू के गठबंधन ने इस सीट पर एक नया चुनावी समीकरण गढ़कर लालू यादव के मजबूत पकड़ वाले क्षेत्र को उनसे छीन लिया। इस गठबंधन ने सावधानीपूर्वक जातीय गोलबंदी की: बीजेपी ने अपने पारंपरिक वैश्य, भूमिहार और सवर्ण वर्ग के वोटों को एकजुट किया, जबकि नीतीश कुमार की जेडीयू ने अतिपिछड़ा और महिला वोट बैंक को मज़बूत किया। इस नए समीकरण के कारण RJD की राह मुश्किल हो गई। लालू यादव ने बाद के चुनावों में अपनी पत्नी राबड़ी देवी और बेटी रोहिणी आचार्य को भी इस सीट से टिकट दिया, लेकिन वे दोनों ही जीत का स्वाद नहीं चख पाईं।
यहां तक कि लोकसभा चुनाव में भी RJD को हार मिली। 2014 के आम चुनाव में बीजेपी के राजीव प्रताप रूडी इस सीट से सांसद बने, जबकि सीएन गुप्ता ने विधायक का पद संभाला। पिछले दो दशकों में, RJD इस सीट से सिर्फ एक उपचुनाव ही जीत पाई है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि लालू यादव की विरासत वाली यह सीट अब राजनीतिक रूप से कितनी चुनौतीपूर्ण हो गई है।
खेसारी लाल यादव पर बड़ा दांव
इस बार RJD ने भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार खेसारी लाल यादव को मैदान में उतारकर एक बड़ा और साहसिक दांव खेला है। खेसारी लाल यादव की लोकप्रियता बिहार और उत्तर प्रदेश के युवाओं और प्रवासी मजदूरों के बीच अत्यधिक है। उनके गाने, डायलॉग और फिल्में अक्सर प्रवासियों के संघर्षों और भावनाओं पर आधारित होती हैं, जो RJD के पारंपरिक वोट बैंक और युवाओं को आकर्षित कर सकती हैं। चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले ही उनकी लोकप्रियता का प्रदर्शन तब हुआ जब उनके समर्थकों ने उनके लिए दूध से स्नान और 5 लाख रुपये के सिक्के लुटाए। RJD उम्मीद कर रही है कि खेसारी लाल की स्टार पावर और मजबूत अपील पार्टी के जातीय आधार को फिर से एकजुट करके खोया हुआ रुतबा दिला सकती है।
छपरा का जातीय गणित
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, छपरा सीट का जातीय समीकरण काफी जटिल है। यहाँ पर बनिया वोटर्स की संख्या लगभग 90 हजार है, जिसके बाद करीब 50 हजार राजपूत, 45 हजार यादव, 39 हजार मुसलिम और 22 हजार से अधिक अन्य वोटर्स हैं। इस सीट पर अब तक अधिकांश विधायक यादव और राजपूत समुदाय से ही रहे हैं। RJD खेसारी लाल यादव की युवा अपील और यादव-मुस्लिम समीकरण के साथ मिलकर बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के समीकरणों को तोड़ने की उम्मीद कर रहा है।