इस वर्ष भारत में मानसून की शुरुआत 8 दिन पहले ही हो गई है, जो सामान्यतः 1 जून के आसपास शुरू होता है। 23 मई को ही मानसून ने केरल में दस्तक दे दी, और इसके साथ ही महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में प्री-मानसून बारिश भी शुरू हो गई है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने देश के कई हिस्सों में तेज बारिश, आंधी-तूफान और तेज हवाओं को लेकर अलर्ट भी जारी किया है।
यह बदलाव केवल एक तात्कालिक मौसम घटना नहीं है, बल्कि इसके पीछे कुछ वैज्ञानिक, मौसमी और जलवायु से जुड़े कारण हैं, जिन पर ध्यान देना बेहद जरूरी है।
क्यों समय से पहले आया मानसून?
भारत में मानसून की समय से पहले शुरुआत कई जलवायु कारकों और समुद्री गतिविधियों पर निर्भर करती है। आइए एक-एक करके जानते हैं उन प्रमुख कारणों को, जिन्होंने इस साल मानसून को जल्दी आने पर मजबूर कर दिया।
1. समुद्री सतह का तापमान (SST)
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में इस बार समुद्री सतह का तापमान सामान्य से ज्यादा दर्ज किया गया। गर्म समुद्र सतह हवाओं में अधिक नमी पैदा करता है, जिससे बादल बनने और बारिश शुरू होने की संभावना बढ़ जाती है। यही नमी मानसून को समय से पहले खींच लाती है।
2. मौसमी हवाओं का व्यवहार
भारत में मानसून दक्षिण-पश्चिमी हवाओं पर निर्भर करता है। इस साल जेट स्ट्रीम और वैश्विक हवाओं की दिशा में असामान्य परिवर्तन देखने को मिला। ये हवाएं सामान्य समय से पहले दक्षिण दिशा की ओर खिसक गईं, जिससे मानसून ने जल्दी दस्तक दी।
3. एल नीनो और ला नीना प्रभाव
इस साल ला नीना की स्थिति कमजोर पड़ी है, जो भारत में बारिश को बढ़ावा देती है। हालांकि एल नीनो मानसून को कमजोर करता है, लेकिन इस बार इसका प्रभाव सीमित रहा। नतीजतन, मानसून स्थिर और समय से पहले सक्रिय हो गया।
4. मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (MJO)
MJO एक वैश्विक मौसम प्रणाली है, जिसमें बादल और हवाएं हिंद महासागर के ऊपर सक्रिय होती हैं। इस बार MJO का एक्टिव फेज जल्दी शुरू हुआ, जिससे अरब सागर और दक्षिण भारत में बादल बनने और बारिश शुरू होने की प्रक्रिया तेज हो गई।
5. वायुमंडलीय दबाव में बदलाव
इस बार भारतीय उपमहाद्वीप पर दबाव का क्षेत्र सामान्य से कम रहा। जब धरती पर दबाव कम होता है तो समुद्री हवाएं अधिक तेजी से भीतर की ओर खिंचती हैं, जिससे बारिश लाने वाली हवाओं को अनुकूल वातावरण मिल जाता है।
6. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का असर अब प्रत्यक्ष रूप से भारत के मौसम पर दिखने लगा है। बढ़ते तापमान से मौसम चक्रों में असंतुलन आ रहा है। इससे न केवल मानसून की टाइमिंग बदल रही है, बल्कि इसकी तीव्रता और पैटर्न भी अलग हो रहे हैं।
क्या पहले भी ऐसा हुआ है?
हां, भारत में इससे पहले भी समय से पहले मानसून की शुरुआत हो चुकी है। साल 2009 में भी मानसून ने 23 मई को ही दस्तक दी थी, जो रिकॉर्ड में एक अहम बदलाव था। हालांकि उस साल पूरे मानसून सीजन में वर्षा सामान्य से कम रही थी। इसका मतलब यह नहीं कि जल्दी आने वाला मानसून पूरे सीजन में अधिक बारिश देगा।
इसका असर क्या होगा?
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कृषि क्षेत्र पर प्रभाव: जल्दी बारिश होने से धान और खरीफ फसलों की बुआई जल्दी हो सकती है, जो किसानों के लिए लाभकारी हो सकता है। लेकिन अगर मानसून की निरंतरता नहीं बनी रही तो फसलों को नुकसान भी हो सकता है।
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शहरी इलाकों में जलजमाव: मुंबई, पुणे, कोच्चि जैसे शहरों में प्री-मानसून बारिश के कारण जलभराव की स्थिति पहले ही देखने को मिल रही है। इससे इंफ्रास्ट्रक्चर पर दबाव बढ़ेगा।
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स्वास्थ्य समस्याएं: जल्दी आई बारिश से मच्छर जनित रोग, जैसे डेंगू और मलेरिया के मामले बढ़ सकते हैं।
निष्कर्ष:
भारत में इस साल मानसून का जल्दी आना एक संकेत है कि प्राकृतिक जलवायु चक्र अब प्रभावित हो रहे हैं। यह सिर्फ एक मौसम समाचार नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि हमें जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से लेना होगा। समय रहते स्मार्ट खेती, बेहतर शहरी प्लानिंग और पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को अपनाना ही इसका समाधान हो सकता है।