अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने एक विस्फोटक इंटरव्यू में वैश्विक परमाणु सुरक्षा को लेकर सनसनीखेज बयान दिया है। उन्होंने दावा किया है कि दुनिया में इतने परमाणु हथियार जमा हो चुके हैं कि पृथ्वी को 150 बार तबाह किया जा सकता है, और साथ ही रूस, चीन, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान पर चोरी-छिपे भूमिगत परमाणु परीक्षण करने का आरोप लगाया है। सीबीएस न्यूज़ को दिए एक साक्षात्कार में, ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय संधियों और परीक्षणों के मामले में अमेरिका के पीछे रह जाने पर चिंता व्यक्त की। उनका बयान दुनिया को परमाणु हथियारों की दौड़ के एक नए और गुप्त अध्याय की ओर इशारा करता है, जो वैश्विक सुरक्षा और अप्रसार प्रयासों के लिए एक बड़ी चुनौती है।
गुप्त परीक्षणों पर ट्रंप का बड़ा खुलासा
ट्रंप ने तर्क दिया कि रूस, चीन, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान जैसे देश जमीन के नीचे गुप्त रूप से परीक्षण करते हैं, जहां उन्हें पकड़ना मुश्किल होता है। उन्होंने कहा, "ये देश जमीन के नीचे टेस्ट करते हैं, जहां कोई देख नहीं पाता। सिर्फ हल्की कंपन महसूस होती है।" ट्रंप ने अमेरिका को 'खुला समाज' बताते हुए कहा कि अमेरिका को पारदर्शिता बनाए रखनी पड़ती है, जबकि प्रतिद्वंद्वी देश ऐसा नहीं करते। इसी आधार पर उन्होंने जोर दिया कि यदि अन्य देश लगातार अपनी परमाणु क्षमता को बढ़ा रहे हैं, तो अमेरिका को भी अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए परीक्षण करना चाहिए।
अमेरिका ने 1992 के बाद कोई पूर्ण पैमाने का परमाणु परीक्षण नहीं किया है। अब ट्रंप इसे फिर से शुरू करने की वकालत कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर उत्तर कोरिया जैसे छोटे देश लगातार टेस्ट कर सकते हैं, तो अमेरिका जैसे सुपरपावर को पीछे नहीं रहना चाहिए। ट्रंप ने साफ कहा, "हम टेस्ट करेंगे क्योंकि वे टेस्ट कर रहे हैं।" "रूस टेस्ट कर रहा है, चीन टेस्ट कर रहा है, लेकिन वे इसके बारे में बात नहीं करते। उत्तर कोरिया तो लगातार टेस्ट करता रहता है। पाकिस्तान भी टेस्ट कर रहा है।" – डोनल्ड ट्रंप, अमेरिकी राष्ट्रपति
ट्रंप का मानना है कि हथियारों की विश्वसनीयता (Reliability) सुनिश्चित करने के लिए परीक्षण आवश्यक हैं। उन्होंने रूस द्वारा हाल ही में पोसीडॉन अंडरवाटर ड्रोन जैसे उन्नत परमाणु सिस्टम के ट्रायल का हवाला दिया, जो अमेरिका पर कार्रवाई करने का दबाव बढ़ाता है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर अमेरिका परीक्षण नहीं करेगा, तो वह ऐसा नहीं करने वाला इकलौता देश बन जाएगा।
परमाणु हथियारों की होड़ और 'परमाणु क्लब'
दुनिया में आधिकारिक तौर पर नौ देशों के पास परमाणु हथियार हैं, जिन्हें अनौपचारिक रूप से 'परमाणु क्लब' कहा जाता है:
रूस
अमेरिका
चीन
फ्रांस
ब्रिटेन
भारत
पाकिस्तान
इजरायल
उत्तर कोरिया
ट्रंप के ये दावे व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) की प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं, जिसका उद्देश्य परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाना था।
परमाणु अप्रसार संधि (NPT) और भारत का रुख
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस ने परमाणु शक्ति हासिल कर ली और 1960 के दशक में चीन भी इस दौड़ में शामिल हो गया, तो वैश्विक परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण समझौता किया गया।
NPT क्या है? परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty - NPT) 1968 में बनी और 1970 में लागू हुई। इसका प्राथमिक उद्देश्य परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना, परमाणु निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देना और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करना है।
भेदभावपूर्ण प्रावधान: NPT का जोर इस बात पर है कि परमाणु हथियार सिर्फ उन पाँच देशों (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस) तक सीमित रहें, जिन्हें संधि में "परमाणु हथियार संपन्न देश" (Nuclear Weapon States) माना गया है।
भारत का विरोध: भारत ने NPT पर हस्ताक्षर नहीं किया है। भारत का मानना है कि यह संधि भेदभावपूर्ण है, क्योंकि यह केवल 1 जनवरी 1967 से पहले परमाणु परीक्षण करने वाले देशों को ही वैध परमाणु शक्ति मानती है और अन्य देशों पर स्थायी प्रतिबंध लगाती है। भारत तर्क देता है कि यह संधि वैश्विक निरस्त्रीकरण की दिशा में समान रूप से लागू नहीं होती है।
ट्रंप का बयान न केवल वैश्विक हथियारों की दौड़ को फिर से शुरू करने का खतरा पैदा करता है, बल्कि उन देशों (जैसे भारत) के रुख को भी मजबूती प्रदान करता है जो मानते हैं कि जब तक सभी देश परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए प्रतिबद्ध नहीं होते, तब तक एकतरफा प्रतिबंधों वाली संधियां अपर्याप्त हैं।