रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत के साथ एक महत्वपूर्ण सैन्य समझौते को मंजूरी दे दी है। इस समझौते का नाम रिसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक सपोर्ट (RELOS) है, जिसके लागू होने से भारत और रूस की सेनाएं और उनके सैन्य उपकरण एक-दूसरे के देश में कानूनी रूप से तैनात और संचालित किए जा सकेंगे। यह कदम दोनों देशों के बीच सामरिक और सैन्य सहयोग को और भी मजबूत करेगा। यह समझौता दोनों देशों के बीच मंजूरी के दस्तावेजों के आदान-प्रदान के बाद ही प्रभावी हो जाएगा।
क्रेमलिन ने बताया कि राष्ट्रपति पुतिन ने सोमवार को समझौते को मंजूरी देने वाले कानून पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते पर 18 फरवरी 2025 को भारत और रूस के बीच हस्ताक्षर किए गए थे। रूस में, इसे नवंबर में संसद की मंजूरी के लिए भेजा गया था:
-
2 दिसंबर को रूसी संसद के निचले सदन स्टेट ड्यूमा ने इसे मंजूरी दी।
-
8 दिसंबर को ऊपरी सदन यानी काउंसिल ऑफ फेडरेशन ने इसे पास किया।
-
इसके बाद इसे अंतिम मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा गया।
क्या है RELOS समझौता?
RELOS समझौता संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रशिक्षण और आपसी तालमेल को आसान बनाने के लिए तैयार किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य दोनों देशों की सेनाओं को आपसी सहमति से एक-दूसरे की जमीन पर काम करने के लिए स्पष्ट कानूनी व्यवस्था प्रदान करना है।
समझौते के मुख्य प्रावधान:
-
सैन्य सुविधाओं का उपयोग: भारत और रूस की सेनाएं एक-दूसरे की जमीन, एयरबेस, समुद्री बंदरगाह और सैन्य सुविधाओं का इस्तेमाल कर सकेंगी।
-
लॉजिस्टिक्स सहायता: दोनों देश एक-दूसरे की सेनाओं को ईंधन, मरम्मत, भोजन, उपकरण और अन्य लॉजिस्टिक सहायता प्रदान कर पाएंगे।
-
सैन्य संचालन में आसानी: इससे सैन्य अभियान चलाने में और संयुक्त मिशनों के दौरान समर्थन प्रदान करने में आसानी होगी।
कब होगा इसका इस्तेमाल?
यह समझौता कई महत्वपूर्ण और विशेष परिस्थितियों में काम आएगा, जिससे दोनों देशों की सेनाओं की परिचालन क्षमता बढ़ेगी:
-
संयुक्त सैन्य अभ्यास: बड़े पैमाने पर होने वाले संयुक्त अभ्यासों को सुगमता से आयोजित किया जा सकेगा।
-
प्रशिक्षण और तालमेल: सेनाओं के प्रशिक्षण और आपसी तालमेल (Interoperability) में वृद्धि होगी।
-
मानवीय सहायता और आपदा राहत: प्राकृतिक आपदाओं या मानवीय संकटों में राहत और बचाव कार्यों के दौरान तेजी से सहायता पहुंचाई जा सकेगी।
-
एयरस्पेस और बंदरगाहों का उपयोग: रूसी कैबिनेट के अनुसार, इस समझौते से दोनों देशों के विमान एक-दूसरे के एयरस्पेस का उपयोग कर सकेंगे और युद्धपोत एक-दूसरे के बंदरगाहों में रुक सकेंगे।
यह समझौता भारत और रूस के रक्षा सहयोग को और गहरा करेगा। इसके अलावा, यह रूस को हिंद-प्रशांत महासागर में अपनी समुद्री उपस्थिति बढ़ाने में भी मदद कर सकता है, जो क्षेत्रीय भू-राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है।
RELOS समझौता भारत के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उसे प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ अपनी रक्षा साझेदारी को मजबूत करने और दूरस्थ स्थानों पर अपनी सेनाओं की पहुंच और समर्थन सुनिश्चित करने में मदद करता है।